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हडप्‍पा सभ्‍यता भाग-2

पिछले भाग से जारी-
सिंधु घाटी के जिन नगरों की खुदाई की गई है उन्‍हें निम्‍नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
केंद्रीय नगर
तटीय नगरऔर पत्‍तन
अन्‍य नगर और कस्‍बे

सिंधु सभ्‍यता के तीन केंद्रीय नगर हड़प्‍पा, मोहनजोदड़ो और धैलावीरा समकालीन बड़ी बस्‍तियां थी।


हडप्‍पा:-     हड़प्‍पा के टीले या ध्‍वंसावशेषों के विषय में सर्वप्रथम जानकारी 1826 में चार्ल्‍स मेसन ने दी।
                  सन् 1921 में दयाराम साहनी ने इसका सर्वेषण किया और सन् 1923 में इसका नियमित उत्‍खनन आरंभ हुआ। सन् 1926 में माध्‍ावस्‍व्‍ारूप वत्‍स ने तथा सन् 1946 में मार्टीमार ह्वीलर ने व्‍यापक स्‍तर पर उत्‍खनन कराया।
              हड़प्‍पा से प्राप्‍त देा टीलों में पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्‍चिमी टीले को दुर्ग टीला के नाम से संबोधित किया।
          यहां पर 6-6 कक्षों की दो पंक्‍तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले एक अन्‍नागार के अवशेष प्राप्‍त हैं।
          हड़प्‍पा के सामान्‍य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिसतान स्‍थित है जिसे समाधि आर-37 नाम दिया गया है।

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         सिंधु सभ्‍यता में अभ्‍िालेख युक्‍त मुहरें सर्वाधिक हड़प्‍पा से मिले हैं।
        नगर की रक्षा के लिए पश्‍चिम की ओर स्‍थित दुर्ग टीले को ह्वीलर ने मांउड A-B की संज्ञा दी है।
इसके अतरिक्‍त यहां से प्राप्‍त कुद अन्‍य महत्‍वपूर्ण अवशेषों में एक बर्तन पर बना मछुवारे का चित्र, शंख का बना बैल, स्‍त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा जिसे उर्वरता की देवी माना जाता है, पीतल का बना इक्‍का, ईटों के वृत्‍ताकार चबूतरे, गेहूं तथा जौ के दानों के अवशेष प्रमुख है।



मोहनजोदड़ो       सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का शाब्‍दिक अर्थ है 'मृतको का टीला' है। सर्वप्रथम खोज राखालदासा बनर्जी ने सन् 1922 में किया। 
                        मोहनजोदडा़े का सर्वाधिक उल्‍लेखनीय स्‍मारक वृहत् स्‍नानागार है। इसकी लंबाई उत्‍तर से दक्षिण की ओर से लगभग 55 मीटर और चौडाई 33 मीटर है। इसके मध्‍य निर्मित स्‍नानकुंड की लंबाई 11.8 मीटर, चौडाई 7.01 मीटर और गहराई 2.43 मीटर है। 
                       यह विशाल स्‍नानागार धर्मानुष्‍ठान संबंध्‍ाी स्‍नान के लिए था। मार्शल ने इसे तत्‍कालीन विश्‍व का एक आश्‍चर्यजनक निर्माण कहा।
                      मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी ईमारत विशाल अन्‍नागार है जो 45.72 मीटर लंबा है। 
                      मोहन जोदडो की प्रमुख विशेषता उसकी सड़के थीं। मुख्‍य सड़क 9.15 मीटर चौडी थी जिसे राजपथ्‍ा कहा जाता था। 

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                      सड़कें सीधी दिश्‍ाा में एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई नगर काे अनेक वर्गाकार अथवा चतुर्भुजाकार खंडो में विभाजित करती थी। इसे 'आक्‍सफोर्ड सर्कस' नाम दिया गया है। 

चुहूदड़ो:- मोहनजोदडो से 130 किमी  दक्षिण-पूर्व में स्‍थित इस स्‍थल की सर्वप्रथम खोज सन 1931 में एम.जी. मजमूदार ने की थी। सन् 1935 में इसका उत्‍खनन मैके ने किया। 
               मैको को यहां से मनका बनाने का कारखाना तथा भट्ठी बनाने का कारखाना प्राप्‍त हुआ। संभवत: यह एक औद्योगिक केंद्र था। 
              यहां से प्राप्‍त अवशेषों में प्रमुख हैं- अलंकृत हाथी, खिलौना एवं कुत्‍ते के बिल्‍ली का पीछा करते हुए पद-चिन्‍ह, सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्‍त लिपस्‍टिक आदि। 
             चुहूदडो एकमात्र पुरास्‍थल है जहां से वक्राकार ईंटे मिली है। 
             यहा किसी दुर्ग का अवशेष नहीं मिला है। 



  शेष अगले अंक में ---------------------------------------

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हडप्‍पा सभ्‍यता भाग-2 हडप्‍पा सभ्‍यता भाग-2 Reviewed by TEAM 1 on September 25, 2016 Rating: 5

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