SSC STENO EXAM SKILL TEST 2016
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उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष का यह कहना बिल्कुल सही है कि गंगा को प्रदूषित करने वाला कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जायेगा। देर से ही सही, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से ऐसा सख्त रवेया अपनाया जाना आवश्यक है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योग शासन-प्रशासन की आंख में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं तो प्रदूषण की रोकथाम की जिम्मेदारी संभ्ंालने वाली सरकारी एजेंसिया भी लापरवाही का परिचय दे रही है। यह इसी लापरवाही का परिणाम है कि उन उद्योगों की पहचान और पुष्टि भी हो चुकी है जो गंगा नदी को प्रदूषित करने का काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रदूषण रोधी उपायों पर अमल के लिए विवश नहीं किया जा पा रहा है। ऐसे उद्योगों के खिलाफ जो कुद कार्रवाइ्र हुई भी है वह उच्च न्यायालय की सक्रियता के कारण हुई है। सरकारी विभाग किस तरह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं, इसका एक प्रमाण यह है कि गंगा में गिरने वाले प्रदूषित जल को शुद्ध करने के लिए जो शोधन संयंत्र स्थापित किये गए हैं उनमें से अधिकांश अपनी अाधी-अधूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि कहीं-कहीं तो शोधन संयंत्र कामचलाऊ तरीके से अथवा दिखावटी रूप में संचालित किए जा रहे हे। यह उचित है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से उन टेनरियों के खिलाफ सख्त् कार्रवाई की जा रही है जो अनेक चेतावनी के बावजूद अपना दूशित जल गंगा नदी में उड़ेल रहे हैं, लेकिन यह सख्ती केवल टेनिरयों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि एेसे अन्य उद्योग भी हैं जो अपने दूषित जल से इस नदी के प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रहे है। इसके साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से यह भी अपेषित है कि वह गंगा के प्रदूषण के संदर्भ में आम जनता को जागरूक करने के प्रयास करे। गंगा को साफ-स्वच्छ बनाने के लिए यह आवश्यक है कि आम जनता यह महसूस करे कि कसी भी स्तर पर इस नदी को प्रदूषित नहीं होने दिया जाएगा। ऐसी प्रतिबद्धता न केवल गंगा, बल्कि अन्य नदियों के प्रदूषण को दूर करने के लिए भी आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में कुछ देर भले ही हो, लेकिन यह साफ नजर आ रही है कि सभी राजनीतिक दल कमर कसकर मैदान में उतर आए हैं। प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ-साथ जिसतरह छोटे और अनाम-गुमनाम से भी दलों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है उससे राजय में चुनावी माहौल नजर आने लगा है। यह स्वाभाविक ही है, लेकिन विभिन्न दलों के तौर-तरीकों और तेवर यह भी बता रहे हैं कि उन्हें किस तरह चुनाव के समय ही जनता की याद आती है और फिर वे किस प्रकार वोट बैंक बनाने की कोशिश करते है। राजनीतिक दलों की इस प्रवृत्ति का ताजा उदाहरण है कांग्रेस, सपा और बसपा में मुसलिम मतदाताओं को रिझाने की होड। ज्यादा दिन नहीं हुए जब मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मुस्लिम समाज के लिए आरक्षण की मांग करते हुए यह जताने की कोशिश की थी कि वह इस मसले पर कितनी गंभीर है। इसके बाद केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने लखनऊ पहुंचकर जैसे ही यह घोषणा की कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल करने के लिए तेयार हैं वैसे ही समाजवादी पार्टी ने यह मांग कर डाली की केंद्र सरकार सच्चर कमेटी के साथ-साथ रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों पर भी अमल करे। बसपा, कांग्रेस और सपा की सक्रियता के बाद भाजपा ने भी अपेक्षा के अनुरूप यह आरोम मढ़ा कि ये दल मुसलमानों को आरक्षण की आड़ में छलने का काम कर रहे हैं। भाजपा ने यह भी दावा किया कि राजग शासित राज्यों में सरकारी नौकरी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ी है। पता नहीं इस दावे में कितना सच है, लेकिन यह अवश्य स्पष्ट है कि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए कांगेस, सपा और बसपा ने इसके पहले ऐसी गंभीरता दिखाने की जरूरत नहीं समझी। यदि ये दल यह समझ रहे हैं कि चुनाव की पूर्व संध्या पर मुसलिम आरक्षण की मांग करने से मुसलिम समाज ऐसे राजनीतिक दलों से सतर्क रहे जो केवल चुनाव के समय उससे हमदर्दी जताकर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश करते है।
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SSC STENTOGRAPHER 2016 SKILL TEST AUDIO DICTATION FOR HINDI MEDIUM ASPIRANTS
Reviewed by TEAM 1
on
February 11, 2017
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