स्टेनो एक्जाम 2016 के लिये आडियो डिक्टेशन तथा उसका ट्रांसक्रिपशन
2007-2008 का बजट प्रस्ताव संसद में रखने से एक दिन पहले वित्तमंत्री चिदंबरम ने चालू वित्तीय वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया था। सर्वेक्षण में इस बात पर खुशी जाहिर की गई कि गत वर्ष और इस वर्ष हमारे देश की आर्थिक विकास पर क्रमश: 9 और 9.2 प्रतिशत है। आर्थिक तरक्की की इतनी तेज रफ्तार आजादी के बाद कभी भी नहीं रही। सर्वेक्षण में यह बताया गया कि औद्योगिक प्रगति और सेवा क्षेत्र में बढ़ोतरी की दर 11 प्रतिशत की ऊँचाई को पार कर गई है, लेकिन अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि क्षेत्र में जो गिरावट है वह 1950-52 से अब तक कभी नहीं हुई।
सर्वेक्षण के अनुसार 10वीं योजना में कृषि की वार्षिक वृद्धि दर 4 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ने का अनुमान किया गया था लेकिन उसकी रफ्तार 2.3 प्रतिशत पर सिमट गई और इस वर्ष भी उसकी वृद्धि 10 प्रतिशत का आंकड़ा पार करने वाली नहीं है। योजनाकारों का अनुमान है कि यदि आर्थिक विकास को 10 प्रतिशत पर लाना है तो कृषि की व्द्धि दर 6 प्रतिशत होना चाहिए अन्यथा तरक्की के सारे अनुमान झूठे साबित हो सकते है।
करोड़ो किसान परिवारों की सुख समृद्धि के बिना सम्पूर्ण देश का विकास संभव नहीं है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में यदि खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता नहीं होगी तो देश की गरीबी कैसे दूर होगी? 1999-2000 में 760 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ, जो कि एक रिकार्ड है। इस वर्ष तो स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन ने 55 लाख टन गेंहू के आयात का ग्लोबल टेंडर किया है और नाफेड दालों की खरीद करने जा रहा है। गेहूं, दाल, चीनी का निर्यात प्रतिबंधथ्त कर उसके आयात पर सीमा शुल्क शून्य प्रतिशत करना उसके आयात पर सीमा शुल्क शून्य प्रतिशत करना पड़ा। मतलब साफ है कि इस बजट को तैयार करने में किसानों की समस्या सबसे प्रथम चुनौती थी। खाद्य पदार्थों की बाजार में मांग के मुकाबले आपूर्ति की रफृतार काफी नीचे पहुंच गई है, जिसके कारण आम जनता महंगाई की मार से त्रस्त होने लगी है। महंगाई का दूसरा कारण बाजार में बहुत ज्यादा पैसे का प्रचलन माना गया। अर्थात कृषि की भागीदारी की कमी ने महंगाई को तेज किया और देश की बहुत बड़ी आबादी के सामने आर्थिक संकट पैदा किया। इसलिये अर्थ नीति चलाने वालों की यह दलील टिकती नजर नहीं आती कि भार भी पूर्वी एशिया के आर्थिक माडल की तरह आर्थिक विकास दर तेज करे तो गरीबी स्वत: समाप्त हो जायगी। इस नीति ने कृषि पर आजीविका चलाने वाले लोगों को साधन विहीन बनाया है, जबकि मुट्ठी भर लोगों के पास पूंजी एकत्र हो रही है।
बजट प्रस्ताव से ऐसा नहीं लगता कि सरकार ने इनल प्रमुख चुनौतियों को गंभीरता से लिया है। समाज के एक बहत बड़े वर्ग-अल्पसंख्यकों की आर्थिक, शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए गठथ्त सचर कमीशन ने बड़े परिश्रम के बाद सच्चाई का विवरण देते हुए अनेक संस्तुतियां की है। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों के वक्तव्य आ रहे थे कि अल्पसंख्यक वर्गों की उन्नति के लिए इस बजट में विशेष प्रावधान किये जाएंगे, किंतु जो प्रसताव किए गए वे संतोषजनक नहीं है। बजट भाषण के प्रथम चरण में कहा गया है कि कृषि एजेंउे में शीर्ष पर है। बैंक कर्ज में वृद्धि हुई, मुद्रा प्रसार 21.3 प्रतिशत हुआ, विदेशी मुद्रा भण्डार भी 180 अरब डालर हो गया जिसने महंगाई को प्रभावित किया, लेकिन यह जो उदीयमान अर्थव्यवस्था के लक्षण है अर्थात महंगाई सरकार की चिंता से बाहर है। तभी तो चिदंबरम कह रहे थे कि महंगाई रोकने के लिए मेरे पास जादू की कोई छडी नहीं है। खाद्य पदार्थों की बाजार में मांग के अनुसार आपूर्ति के लिए ग्लोबल टेंउर जारी कर दिये गए है। भारत की मांग को देखकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेंहु, दाल और खाद्य तेल के दाम आसमान छू रहे हैं।
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Reviewed by TEAM 1
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January 24, 2017
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