पिछले दो भागों में हमने मौर्य साम्राज्य के शासको के बारे में पढ़ा। इस अंक में हम मौर्यकालीन प्रशासन और समाज के बारे में पढ़ेगें।
मौर्यकालीन प्रशासन:-
मौर्यकालीन प्रशासन:-
- सत्ता का अधिक केंद्रीकरण, उचित न्याय व्यवस्था, विकसित अधिकारी तन्त्र, कृषि शिल्प उद्योग, नगर प्रशासन, व्यापार तथा वाणिज्य की वृद्धि हेतु राज्य द्वारा उपाय किये जाना मौर्य प्रशासन की विशेषताऍं थी।
- राजा सर्वोच्च अधिकारी था तथा समस्त सत्ता उसी में केन्द्रित थी किन्तु वह धर्मानुसार तथा मन्त्रिपरिषद के निर्णय को मानकर, प्रजा की भलाई को ध्यान में रखकर कार्य करता था।
- केन्द्रीय प्रशासन के अन्तर्गत 18 तीर्थो का उल्लेख है। प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष ''महामात्र'' कहलाता था।
- नगर प्रशासन के अन्तर्गत मेगस्थनीज के अनुसार 30 सदस्यों का एक मण्डल होता था, जो 6 समितियों मेे विभक्त होता था।
- प्रान्तों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र कहलाते थे। जिले का प्रशासनिक अधिकारी ''स्थानिक'' कहलाता था।
- प्रान्तीय प्रशासन में अशोक के समय पॉच प्रान्तों के प्रशासन का उल्लेख मिलता है-
- अवन्ति (उज्जैन)
- उत्तरापथ (तक्षशिला)
- प्राच्य या प्रासी (पाटिलपुत्र)
- कलिंग (तोसली)
- दक्षिणापथ(सुवर्णगिरी)
- केन्द्रीय शासन का एक महत्वपूर्ण विभाग सेना विभ्ााग था। इस विभाग का संगथन पॉच समितियों के हाथ में था।
- चन्द्रगुप्त ने सुराष्ट्र के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने ''सुदर्शन'' नामक झील का निर्माण करवाया।
- त्रिपिटको में दासों को चार प्रकार बताये गये है।
- मैगस्थनीज ने भारतीय समाज को 7 जातियों में बाटा था- दार्शनिक, कृषक, योद्धा, पशुपालक, कारीगर, निरीक्षक, मन्त्री।
MAURYA DYNASTY PART-3
Reviewed by TEAM 1
on
March 28, 2015
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